एक दिन की जिंदगी...
एक दिन की जिंदगी....
हां जैसे ये एक दिन की तो जिंदगी है,
मैं मेरी यादों के सफ़र में जिंदा घूमता हूं,
ख्वाहिशें कमाता हूं, एक सांस गवांता हूं,
लेकिन जिंदा घूमता हूं...
दुनिया दौड़ती है कागज लेकर,
जिंदगी की परछाइयों के पीछे-पीछे,
मैं जिंदगी के साथ लेकर चलता हूँ,
लेकिन जिंदा घूमता हूं...
देखता हूं रोज, सपनों का नींद से पलायन,
रात की काली बस्ती आखें खुली रखता हूं,
सुबह को शिकायत रहती है मेरे सुर्ख़ अंधेरे से,
मैं शाम की रोशनी दिल में जलाए घूमता हूं...
ठहर जाता हूँ, उस तालाब की बहाव में,
जहां जिंदगी को भी तैरना नहीं आता,
मैं मौत की कस्ती से मंज़िल के लिए घूमता हूँ...
एक आईना ही मिला देता मुझे मुझसे,
और मैं उसके कारीगर को ढूँढता हूं,
दिखाई देता था उसमें मेरा ख़ुद से याराना,
आज जिंदगी का भार मन में लेकर घूमता हूँ...
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