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यहां कोई काबिल नहीं है...

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तुम अब किसी की परवाह नहीं करते हो, इस लिए तुम अकेले रहने लगे हो। उसकी बात सुनकर मैंने भी हां बोल दिया। कौन बहस करे अब, हालाकि मुझे जवाब देना तो आता है लेकिन हम देना नहीं चाहते हैं। और रही बात अकेले रहने की तो हम अपनी मर्ज़ी से अकेले हैं और खुश हैं। हां कभी कभी मुझे सच मे किसी की परवाह नहीं होती है और जिसकी होती है वो हम दिल से करते हैं। उसके लिए किसी को बोलने की ज़रूरत नहीं होती है और परवाह करना या ना करना इंसान के व्यवहार पर निर्भर करता है। एक हाल ही का किस्सा है जब मेरा एक बहुत करीबी ने मुझे बताया कि आजकल परिवार में लोग उसे ताने देते रहते हैं, वो टूट सा गया है। उसे अब परिवार वालों के रहते हुए भी घर काटने को दौड़ता है, तो मैंने उसकी बात को काटते हुए बीच में ही बोल दिया सुनो ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है बस एक बार मेरे बीते हुए उन सालों की ज़िंदगी को याद कर लेना तुम्हें सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। उसके बाद वो कुछ देर के लिए ख़ामोश हो गया क्योंकि मेरे शुरुआती दौर ताने मारने वालों की कतार में एक वो भी था, लेकिन उसको शायद जवाब मिल गया था, जब मैंने केवल एक सवाल पूछा कि क्या मैंने कभी

तुम हिम्मत कैसे हार जाते हो...

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  प्रिय साथी        सुना है कि तुम मेरी चिठ्ठियों को पढ़ते हो, मुस्कुराते भी हो लेकिन उसका जवाब नहीं देते हो। कोई बात नहीं मुझे इसका अफसोस नहीं है लेकिन मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखना बंद नहीं करुंगा। आजकल वैसे भी हम किसी से कोई अपेक्षा रखते भी नहीं है। मैंने अकेले खुश रहना सीख लिया है। हां जब तुम जब मिलोगे वो एक समय होगा, और मैं उस समय का इंतज़ार भी कर रहा हूं। फिलहाल अभी अकेले रहने से डर नहीं लगता है। मैं बस इतना चाहता हूं कि तुम तभी मेरे पास आना जब तुम्हें ये लगने लगे कि मेरे साथ आने का तुम्हारा ये फ़ैसला गलत नहीं है। तब तक तुम हिम्मत जुटाओ, क्योंकि मेरे पास समाज से लड़ने के लिए बहुत हिम्मत है लेकिन जब तुम साथ आओगे तो हिम्मत दोगुनी हो जायेगी तुम्हारी भी और मेरी भी।  वैसे आजकल मैं सुन रहा हूं कि तुम ज़िंदगी से हारने जैसा महसूस करने लगे हो। छोटी-छोटी बातें तुम्हें तुम्हारा आपा खोने पर मजबूर कर देती हैं। तुमने कई बार ख़ुद के सामान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी की है, लेकिन उससे क्या होगा। क्या तुम्हें पता नहीं है कि मैं तुम्हारी हिम्मत बनकर खड़ा हूं या क्या तुम्हें ये पता नहीं है कि मुझे

व्याकुल मन

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प्रिय साथी,               काफ़ी दिनों से सोच रहा था कि तुम्हें कुछ लिखूं, लेकिन वक्त की कमी के कारण लिखना सम्भव नहीं हो पा रहा था। आज जब थोड़ा समय मिला तो लगा कि तुम्हें याद ही कर लिया जाए। ऐसा नहीं है हम तुम्हें याद नहीं करते हैं, हम तुम्हें तब भी याद करते हैं जब हम सबसे ज्यादा व्यस्त होते हैं। बस मुझे जताना नहीं आता है। सच कहूं तो आजकल बहुत थका हुआ महसूस होता है कल इसी लिए मैं सड़क किनारे बैठ गया, काफ़ी दिनों से मन में एक उलझन सी हो रही है। किसी से कहने की हिम्मत ही नहीं हो पा रही है, क्योंकि यहां कोई नहीं समझेगा और अगर कोई सुनने वाला मिल भी जाए तो वो तुम्हारे लिए अपने मन में एक विशेष चरित्र बनाकर लोगों के सामने रख देगा। वो चरित्र जो तुम कभी थे ही नहीं।  इसी लिए मुझे तुम्हारा इंतज़ार है, क्योंकि मुझे पता है कि तुम औरों की तरह मेरे लिए कोई एक चरित्र अपने मन में नहीं बनाओगे, तुम मुझे सुनोगे और मेरी बात को भी समझोगे। तुम्हें जानकर हैरानी होगी कि जबसे हमनें उम्र के नए पड़ाव में क़दम रखा है, आस पास के लोग बहुत से ताने देते हैं। कि तुम शादी क्यों नहीं कर लेते हो, कब करोगे शादी? हम उनकी बात

आजकल नींद कड़वी हो चली है...

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  आजकल मैं ख़ुद को अंधेरे में ढूंढने निकल पड़ता हूं। मिलना तो नहीं पाता है ख़ुद से, लेकिन ढूंढते हुए कई बार यादों और वादों के उस नदी तक पहुंच जाता हूं, जहां अक्सर मैं अकेले घंटों तक समय काट देता हूं । जहां मैंने अपने सपनों के बगीचे में देवदार जैसे कई पेड़ लगाए हुए हैं। उनकी छांव में अक्सर मैं खुद को एक छोटी सी चींटी की तरह पाता हूं। उसके नीचे बैठने पर ऊबने जैसी कोई भावना मन में नहीं आती है, और यहीं पर शुरु होती हैं नींद और सपनों की आपसी लड़ाई। आख़िरी जीत किसकी होती है ये कहना मुश्किल होगा क्योंकि सपना पूरा नहीं होता और नींद बीच में ही साथ छोड़ देती है। इस हार जीत में आंखों का और दिमाग़ का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, या इसको इस भाषा में भी कह सकते हैं कि आजकल मेरी नींद कड़वी हो चली है, और सपनों का दौर ऐसा है कि  जब नींद ही नहीं आती है तो सपनों का आना भी एक सपना सा हो जाता है। रोज़ इसी उधेड़ बुन में रात गुजरती है कि आज की नींद थोड़ी मीठी होगी, लेकिन रात कब गुजर जाती है सुबह का उजाला भी नहीं बता पाता है। लेकिन यहां मैं केवल अपनी नहीं कर रहा हूं मुझे पता है कि  तुम्हारा हाल भी यही है। तुम्

सब डरपोक हैं...

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  पता है इस दुनियां में सबसे खतरनाक चीज़ क्या है? "डर", डर इस दुनियां की वो खतरनाक चीज़ है जिससे आज तक कोई व्यक्ति बच नहीं सका। चाहे वह कोई बहुत बड़ा राजा हो या कोई रंक। यहां हर कोई डरता है और आज के जमाने में तो डर की कई अलग अलग परिभाषाएं हैं। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा जिसकी बात होती है, वो है इंसान का अकेला रह जाना, परिस्थितियों से हार जाना, समाज और परिवार से मिलने वाले तानें, मंज़िल तक पहुंचने का डर और भी बहुत कुछ।  इसमें एक वाक्य है, उस व्याक्य का अपना कोई व्यक्तित्व तो नहीं है लेकिन उसका मतलब बहुत गहरा है कि "जिसको पाया नहीं उसी को खोने से डरते हैं" और आज के जमाने में ये काफ़ी सटीक भी बैठता है। हमें लगता है कि आज तक ऐसा कोई भी नहीं हुआ जिसपर इस वाक्य का प्रभाव ना पड़ा हो। लेकिन इंसान को इसी के साथ जीना भी पड़ता है, बस लोग इसके साथ जीने के कई बहाने ढूंढ लेते हैं, मसलन कोई बहुत ज्यादा मुस्कुराता रहता है, तो कोई किसी भी बात की परवाह ना करने का बहाना करता है, कोई कहता है कि वह जहां है खुश है, तो कोई जो होगा अच्छा होगा के नियम से जीने की कोशिश करता है, कोई ऐसा भी होता

मुझे शिकायत नहीं है...

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आज वक्त का लगभग 28 साल बीतने को है। कभी कभी जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कि ज़िंदगी की गाड़ी में सवार होकर ना जाने कितनी दूर निकल आए हैं। बहुत सारे लोग, जानें अनजाने चेहरे कई बार मेरी नजरों के सामने घूमने लगते हैं। सच कहूं तो ज़िंदगी के जिस सफ़र में हम हैं या जिस किसी भी सफ़र में रहेगें, हम कभी उन सबको नहीं भूल सकते जिन्होंने मुझे यहां तक आने में अपना एक एक कीमती योगदान दिया है। चाहे वो मेरी राहों में काटें बिछाकर हो या उसे हटाकर। ज़िंदगी के कई उतार चढ़ाव को आते जाते देखा है हमनें। सच कहें तो एक दोस्त ने कहा था कि हम बहुत ही ज़िद्दी इंसान हैं, एक अजीब सी धुन है मुझे ज़िंदगी को लेकर। उसकी बात आजतक हमारे कानों में गूंजती है। हम मानते हैं कि हम आवारा है लेकिन लापरवाह नहीं है, ना कभी हो सकतें हैं। हमें आजतक ऐसा कोई वक्त नहीं मिला जिस पर घमंड किया जाए, ना ही ऐसा कोई वक्त जिसको लेकर अफ़सोस किया जाए। ज़िंदगी को बड़ी ही संजीदगी के साथ जीना आता है हमें।  हम बस ज़िंदगी को जीना चाहते हैं सीखना चाहते हैं। हमें कभी किसी से शिकायत नहीं हुई कि उसने मेरा साथ नहीं दिया या वो मेरी सहायता कर सकता

उम्र का पड़ाव...

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बहुत दिनों बाद सुकून मिला है जैसे। एक चिड़िया सा बोझ था मन में लेकिन अब नहीं है। बहुत दिनों से लग रहा था पता नहीं कहां कैद हैं, लेकिन अब आज़ाद महसूस हो रहा है। अब डर नहीं लगता है, लगता है ज़िंदगी को एक नया पड़ाव मिल गया है। नहीं कोई खुशी की बात नहीं है, लेकिन आज जब घर लौटा तो मन बड़ा हल्का लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे शरीर हवा को महसूस कर रहा है, मन में एक लम्बी श्वास पहले से ज्यादा ठंडी और सुख देने का एहसास करा रही  है। ऐसा पहले भी हुआ है और जब भी हमें ऐसा महसूस होता है कहीं न कहीं हम उम्र के एक पड़ाव को पार कर रहे होते हैं, हां तो आज भी कुछ वैसा ही है। आज समय भी बड़ा शांत होकर मेरी बातें को सुन रहा है। हो भी क्यों ना एक अरसे से हमनें समय को भी समय नहीं दिया। कभी-कभी लगता है हम इतने व्यस्त कब हो गए ज़िंदगी में कि समय का भी साथ छोड़ दिया था हमनें, लेकिन आज नहीं, आज वो मेरे साथ बैठकर मेरी सारी बातें सुनेगा, मेरे सारे सवालों के जवाब भी देगा, मेरे पास भी आज उसके सारे सवालों के जवाब हैं।  आज हम समय से आंखें मिलाकर ये बोल पा रहे हैं, कि हम तुमसे दूर नहीं हुए ना होना चाहते हैं बस तुम्हारे