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"मुझे प्यार है"

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मुझे प्यार है मौत से, मुझे प्यार है हार से, मुझे प्यार है गिरने से,  मुझे प्यार है टूटने से, हां मुझे प्यार है,, हां मुझे प्यार है... मुझे प्यार है अंधेरों से, मुझे प्यार है सन्नाटों से, मुझे प्यार है आँधियों से, मुझे प्यार है तन्हाईयो से, हां मुझे प्यार है... हां मुझे प्यार है... मुझे प्यार है डूबने से, मुझे प्यार है खोने से, मुझे प्यार है दर्द से, मुझे प्यार है नफरत से, मुझे सच में प्यार है... हां मुझे प्यार है।

Cafe and Me

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If I don't feel like writing on a certain day, I just go to the cafe and hang around. I'm never bored, never ever bored. If I've got a day off I'll sit in a cafe and watch and observe. I'm a great observer. My perfect morning is spent drinking coffee, eating porridge and reading the paper at a local cafe. If you can't sit in a cafe quietly and be ignored, how can you observe human nature and write a story? Union Square Cafe is all soul, not brain. Every time I pass a cafe, I imagine it being stormed by men with Kalashnikovs Federalism is not one state dictating to the rest of the country what should occur in the area of CAFE

Rural Fair

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People going in fair. Children looking Jhoola in fair. A family sells sweet in fair. A sweet shopkeeper buys sweet. people are playing the game of gambling. After fair people going home.

ख्वाहिशें

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ख्वाहिशें जो कभी खत्म नहीं होती हैं, जिसकी वजह से हम उस असल जिंदगी को भूल जाते हैं जो हमने बचपन में स्कूल में दोस्तों के साथ गुजारी थी। कितना सोचते थे, बडे होंगे तो साथ रहेंगे। साथ-साथ पढेगें। एक साथ जिंदगी के उन मंजिलों तक पहुंचेगें। कभी हमारे सपने क्लास रुम के उस पीछे वाले बेंच से आगे नहीं आए। और न ही हमारे सपने क्रिकेट के उस मैदान से बाहर गए थे। जहां आज सूनापन फैला हुआ रहता है। आज भी स्कूल की वो बाउंड्री वाल याद आती है। जहां कभी हम दोस्तों के साथ स्कूल से बंक मारा करते थे। फिर से याद आता है, वो दिन। लेकिन क्या करें ख्वाहिशें बना ली है हमने और दोस्तों ने भी। जिंदगी से सबकुछ हासिल करने का। लेकिन इन सबमें हम खुद को भुल गए। शायद हमारे गुरुजी को भी हम हमारे दोस्तों की शैतानियां याद आती होगीं। कितना परेशान करते थे हमसब। आज भी कभी लगता है, कि वो हमें यूहीं डाटेगें और कल फिर हम स्कूल से बंक मारेगें।

कुछ जिंदा सा हूं मैं...

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कुछ जिंदा सा हूं मैं... रोजाना की तरह आज भी शहर में एक आवारा बनकर घुम रहा था। कि मेरी मुलाकात सडक के बीचोबीच बैठी शोर से हो गयी। दोपहर की कडी धूप में उदास बैठी थी। शायद कोई बिछड गया हो ऐसे उदास थी। मेरी नजर उसपर पडी तो मैं उसके पास जाने लगा। मुझे पास आता देख पहले वो डर गयी, और जाने लगी तभी मैंने आवाज दिया। सुनिए!! उसने मुडकर मुझे देखा, बोला आपने मुझे बुलाया, मैंने कहा हां,, मैंने पुछा क्यों परेशान हैं आप, क्या कुछ खो गया है, या रास्ता भटक गए हैं, कहीं जाना है आपको तो बता दिजिए शायद मुझे वहां का पता मालूम हो। उसने मेेरे चेहरे की तरफ गौर से देखा, जैसे कुछ पढने का कोशिश कर रही हो। फिर बडी शांत स्वर में बोली। हां शायद मैं भटक गयी हूं। मैंने फिर पूछा कहां रहती हैं आप कहां से आयी हैं। उसने बोला पता नहीं कैसे मैं यहां आ गयी, पहले तो मैं गावों में पेडों की ओट से हवा के साथ चलती थी, तो लोगों को बहुत अच्छा लगता था। जब भी गांवो में जब मां अपने बच्चों को आवाज देती थी, तो उनकी आवाज के साथ चलती तो उनको बहुत अच्छा लगता था। खेतों के पगडंडियों से जब बच्चे कतार बनाकर चलते थे, और चिल्लाते थे, तो उनक...