ख्वाहिशें
ख्वाहिशें जो कभी खत्म नहीं होती हैं, जिसकी वजह से हम उस असल जिंदगी को भूल जाते हैं जो हमने बचपन में स्कूल में दोस्तों के साथ गुजारी थी। कितना सोचते थे, बडे होंगे तो साथ रहेंगे। साथ-साथ पढेगें। एक साथ जिंदगी के उन मंजिलों तक पहुंचेगें। कभी हमारे सपने क्लास रुम के उस पीछे वाले बेंच से आगे नहीं आए। और न ही हमारे सपने क्रिकेट के उस मैदान से बाहर गए थे। जहां आज सूनापन फैला हुआ रहता है। आज भीस्कूल की वो बाउंड्री वाल याद आती है। जहां कभी हम दोस्तों के साथ स्कूल से बंक मारा करते थे। फिर से याद आता है, वो दिन। लेकिन क्या करें ख्वाहिशें बना ली है हमने और दोस्तों ने भी। जिंदगी से सबकुछ हासिल करने का। लेकिन इन सबमें हम खुद को भुल गए। शायद हमारे गुरुजी को भी हम हमारे दोस्तों की शैतानियां याद आती होगीं। कितना परेशान करते थे हमसब। आज भी कभी लगता है, कि वो हमें यूहीं डाटेगें और कल फिर हम स्कूल से बंक मारेगें।
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