कुछ जिंदा सा हूं मैं...
कुछ जिंदा सा हूं मैं...
रोजाना की तरह आज भी शहर में एक आवारा बनकर घुम रहा था। कि मेरी मुलाकात सडक के बीचोबीच बैठी शोर से हो गयी। दोपहर की कडी धूप में उदास बैठी थी। शायद कोई बिछड गया हो ऐसे उदास थी। मेरी नजर उसपर पडी तो मैं उसके पास जाने लगा। मुझे पास आता देख पहले वो डर गयी, और जाने लगी तभी मैंने आवाज दिया। सुनिए!! उसने मुडकर मुझे देखा, बोला आपने मुझे बुलाया, मैंने कहा हां,, मैंने पुछा क्यों परेशान हैं आप, क्या कुछ खो गया है, या रास्ता भटक गए हैं, कहीं जाना है आपको तो बता दिजिए शायद मुझे वहां का पता मालूम हो।
उसने मेेरे चेहरे की तरफ गौर से देखा, जैसे कुछ पढने का कोशिश कर रही हो। फिर बडी शांत स्वर में बोली। हां शायद मैं भटक गयी हूं। मैंने फिर पूछा कहां रहती हैं आप कहां से आयी हैं। उसने बोला पता नहीं कैसे मैं यहां आ गयी, पहले तो मैं गावों में पेडों की ओट से हवा के साथ चलती थी, तो लोगों को बहुत अच्छा लगता था। जब भी गांवो में जब मां अपने बच्चों को आवाज देती थी, तो उनकी आवाज के साथ चलती तो उनको बहुत अच्छा लगता था। खेतों के पगडंडियों से जब बच्चे कतार बनाकर चलते थे, और चिल्लाते थे, तो उनकी चिल्लाहट के साथ चलती तो बहुत अच्छा लगता था। गाय, भैसों के गले में जब घंटी बांधी जाती थी और वो चलते थे, इस दौरान जो घंटी से आवाज आती थी, उस आवाज के साथ मैं चलती बहुत अच्छा लगता था। गांव के दादा जब साइकिल चलाते और साइकिल के पहियों के साथ जो घनघनाहट की आवाज आती थी उसके साथ मैं चलती थी, तो बहुत अच्छा लगता था। घर में जब कोई मेहमान आता था, उस समय बच्चों के चेहरे पर जो खुशी होती थी, उनकी खुशियों में मैं थी। गावों में जब कुल्फी बेचने के लिए जो चाचा आते थे, वो जो भोंपू बजाते थे। उसकी आवाज में मैं थी।
लेकिन एक दिन उस गांव का बेटा शहर गया और वहां से एक गाडी ले आया। उसकी आवाज में मैं शामिल होना नहीं चाहती थी। लेकिन मुझे मजबुर होकर उसमें शामिल होना पडा। अब जब भी वो गांव की गलियों से गुजरती
तो लोगों को मैं चुभने लगी। पहले दादा दादी उनके पास के लोगों का जितना प्यार मुझे मिलता था। वो अब कहीं खोने लगा था। इससे मैं परेशान रहने लगी और मैं बीमार पडने लगी। सोचने लगी कि अब क्या होगा...
अभी उनकी बात सुन ही रहा था कि एकदम से गर्म लू का एक झोंका आया और बहुत तेजी से चेहरे पर थप्पड मारते हुए गुजर गया। मैंने खुद को बचाया और फिर उनको देखा तो उसका चेहरा बहुत लाल दिखाई दे रहा था।
मैंने बोला पहले किसी छायेदार जगह चलते हैं, जहां आपको थोडा सा आराम मिल सके फिर आप अपनी कहानी जारी रखिएगा...
कहानी जारी है...
रोजाना की तरह आज भी शहर में एक आवारा बनकर घुम रहा था। कि मेरी मुलाकात सडक के बीचोबीच बैठी शोर से हो गयी। दोपहर की कडी धूप में उदास बैठी थी। शायद कोई बिछड गया हो ऐसे उदास थी। मेरी नजर उसपर पडी तो मैं उसके पास जाने लगा। मुझे पास आता देख पहले वो डर गयी, और जाने लगी तभी मैंने आवाज दिया। सुनिए!! उसने मुडकर मुझे देखा, बोला आपने मुझे बुलाया, मैंने कहा हां,, मैंने पुछा क्यों परेशान हैं आप, क्या कुछ खो गया है, या रास्ता भटक गए हैं, कहीं जाना है आपको तो बता दिजिए शायद मुझे वहां का पता मालूम हो।
उसने मेेरे चेहरे की तरफ गौर से देखा, जैसे कुछ पढने का कोशिश कर रही हो। फिर बडी शांत स्वर में बोली। हां शायद मैं भटक गयी हूं। मैंने फिर पूछा कहां रहती हैं आप कहां से आयी हैं। उसने बोला पता नहीं कैसे मैं यहां आ गयी, पहले तो मैं गावों में पेडों की ओट से हवा के साथ चलती थी, तो लोगों को बहुत अच्छा लगता था। जब भी गांवो में जब मां अपने बच्चों को आवाज देती थी, तो उनकी आवाज के साथ चलती तो उनको बहुत अच्छा लगता था। खेतों के पगडंडियों से जब बच्चे कतार बनाकर चलते थे, और चिल्लाते थे, तो उनकी चिल्लाहट के साथ चलती तो बहुत अच्छा लगता था। गाय, भैसों के गले में जब घंटी बांधी जाती थी और वो चलते थे, इस दौरान जो घंटी से आवाज आती थी, उस आवाज के साथ मैं चलती बहुत अच्छा लगता था। गांव के दादा जब साइकिल चलाते और साइकिल के पहियों के साथ जो घनघनाहट की आवाज आती थी उसके साथ मैं चलती थी, तो बहुत अच्छा लगता था। घर में जब कोई मेहमान आता था, उस समय बच्चों के चेहरे पर जो खुशी होती थी, उनकी खुशियों में मैं थी। गावों में जब कुल्फी बेचने के लिए जो चाचा आते थे, वो जो भोंपू बजाते थे। उसकी आवाज में मैं थी।
लेकिन एक दिन उस गांव का बेटा शहर गया और वहां से एक गाडी ले आया। उसकी आवाज में मैं शामिल होना नहीं चाहती थी। लेकिन मुझे मजबुर होकर उसमें शामिल होना पडा। अब जब भी वो गांव की गलियों से गुजरती
तो लोगों को मैं चुभने लगी। पहले दादा दादी उनके पास के लोगों का जितना प्यार मुझे मिलता था। वो अब कहीं खोने लगा था। इससे मैं परेशान रहने लगी और मैं बीमार पडने लगी। सोचने लगी कि अब क्या होगा...
अभी उनकी बात सुन ही रहा था कि एकदम से गर्म लू का एक झोंका आया और बहुत तेजी से चेहरे पर थप्पड मारते हुए गुजर गया। मैंने खुद को बचाया और फिर उनको देखा तो उसका चेहरा बहुत लाल दिखाई दे रहा था।
मैंने बोला पहले किसी छायेदार जगह चलते हैं, जहां आपको थोडा सा आराम मिल सके फिर आप अपनी कहानी जारी रखिएगा...
कहानी जारी है...
अच्छा है।
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