यहां कोई काबिल नहीं है...

तुम अब किसी की परवाह नहीं करते हो, इस लिए तुम अकेले रहने लगे हो। उसकी बात सुनकर मैंने भी हां बोल दिया। कौन बहस करे अब, हालाकि मुझे जवाब देना तो आता है लेकिन हम देना नहीं चाहते हैं। और रही बात अकेले रहने की तो हम अपनी मर्ज़ी से अकेले हैं और खुश हैं। हां कभी कभी मुझे सच मे किसी की परवाह नहीं होती है और जिसकी होती है वो हम दिल से करते हैं। उसके लिए किसी को बोलने की ज़रूरत नहीं होती है और परवाह करना या ना करना इंसान के व्यवहार पर निर्भर करता है।

एक हाल ही का किस्सा है जब मेरा एक बहुत करीबी ने मुझे बताया कि आजकल परिवार में लोग उसे ताने देते रहते हैं, वो टूट सा गया है। उसे अब परिवार वालों के रहते हुए भी घर काटने को दौड़ता है, तो मैंने उसकी बात को काटते हुए बीच में ही बोल दिया सुनो ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है बस एक बार मेरे बीते हुए उन सालों की ज़िंदगी को याद कर लेना तुम्हें सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। उसके बाद वो कुछ देर के लिए ख़ामोश हो गया क्योंकि मेरे शुरुआती दौर ताने मारने वालों की कतार में एक वो भी था, लेकिन उसको शायद जवाब मिल गया था, जब मैंने केवल एक सवाल पूछा कि क्या मैंने कभी उन्नतीस सालों में किसी से कोई शिकायत किया है क्या और उसका जवाब था नहीं। मैंने कहा कि देखो आज के समय बहुत मुश्किल है कि किसी ऐसे इंसान का मिलना जो तुम्हारी बात या तुमको समझ पाए। 

तुम्हें किसी की परवाह नहीं करनी चाहिए ज़िंदगी में आगे की सोचनी चाहिए, तुम्हें कोई बचाने भी नहीं आएगा ना ही तुम्हें ज़िंदगी के रास्तों पर कोई चलना सिखाएगा, तुम उस बांस की तरह हो जो समुद्र में बिना किसी सहारे अकेला खड़ा है लेकिन उसकी लहरों से शिकायत नहीं कर सकता है कि तुम इतनी तेज़ क्यों हो। क्योंकि लहरें अपनी मर्ज़ी से से चलती है, बस तुम्हारी अपनी हिम्मत है कि बिना सहारे तुम्हें खड़े रहना है या बहाव से हार कर डूब जाना है। वैसे भी मैंने एक बात बहुत पहले सीख लिया था कि, "यहां हर कोई काबिल नहीं होता है", और ये सच भी है। बचपन में स्कूल में शिक्षक बोलते हैं कि तुम इस विषय के काबिल नहीं हो, दोस्त बोलते हैं कि तुम इस चीज़ के लिए काबिल नहीं हो, थोड़े बड़े होने लगो तो परिवार जन बोलते हैं कि तुम घर कि जिम्मेदारियों के काबिल नहीं हो और जब दुनियां में अपने पैरों पर खड़े हो जाओ तो आस पास के लोग बोलते हैं कि तुम इस काम के काबिल नहीं हो। एक बात सच कहता हूं जो मैंने हिंदी साहित्य में भी पढ़ा था कि शब्दों की बाण शारीरिक हिंसा से भी ज्यादा घातक होती है, इस लिए आप जब भी किसी के बारे में किसी से कहते हैं तो बहुत ही सोच समझ कर बोलना चाहिए। कई बार आपके एक गलत शब्द के कारण इंसान की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाती है या तो वो कुछ ऐसा कर जाता है जो दुनियां के लिए मिशाल बन जाती है तो कभी वो ख़ुद से इतना टूट जाता है, कि वो किसी गलत हालात का शिकार हो जाता है। 

मेरे साथ भी हुआ है, जब कई बार ऐसे मौके आए कि मुझे लगा कि यहां ज़िंदगी ख़त्म है, लेकिन मैंने बोला ना कि शिकायत किससे करोगे। हालांकि अब उस दौर से बहुत दूर आ गए हैं, अब मेरे जैसे इंसान को शब्दों के बाण से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है क्योंकि हमारी पीठ पहले से इतनी छलनी हो चुकी है कि अब दर्द का एहसास भी नहीं होता है, और लोगों को लगता है कि ये इंसान इतनी मुस्कुराहट से ज़िंदगी कैसे जी लेता है, क्या इसको कोई दर्द नहीं है क्या इसको कोई दुख नहीं है। अरे भाई मैं भी इंसान हूं, दुख दर्द से मैं अछूता नहीं हूं बस मैं हर किसी के सामने अपने दर्द का गाना नहीं गाता हूं। 

सच बताऊं तो मैंने इस इंसानी जंगली दुनियां में ख़ुद को इस क़दर ढाल लिया है कि मुझे किसी भी कठिनाई से कोई दिक्कत नहीं होती है, मेरे पास उन सभी सवालों के जवाब होते हैं जो अक्सर मैं ख़ुद से करता रहता हूं। मैं बस एक बात जानता हूं कि कभी किसी इंसान से कोई अपेक्षा और जिंदगी से ज्यादा कोई महत्वकांक्षा कभी मत रखना वरना ज़िंदगी कभी आसान नहीं होगी। वो कहते हैं ना हर किसी की ज़िंदगी में "कुछ और काश" हमेशा रह ही जाता है और क्या ही लिखूं, यहां लोग मुझसे ज्यादा समझदार है और किसी को कुछ समझा सकूं मैं उस काबिल नहीं।

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