सब डरपोक हैं...
पता है इस दुनियां में सबसे खतरनाक चीज़ क्या है? "डर", डर इस दुनियां की वो खतरनाक चीज़ है जिससे आज तक कोई व्यक्ति बच नहीं सका। चाहे वह कोई बहुत बड़ा राजा हो या कोई रंक। यहां हर कोई डरता है और आज के जमाने में तो डर की कई अलग अलग परिभाषाएं हैं। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा जिसकी बात होती है, वो है इंसान का अकेला रह जाना, परिस्थितियों से हार जाना, समाज और परिवार से मिलने वाले तानें, मंज़िल तक पहुंचने का डर और भी बहुत कुछ।
इसमें एक वाक्य है, उस व्याक्य का अपना कोई व्यक्तित्व तो नहीं है लेकिन उसका मतलब बहुत गहरा है कि "जिसको पाया नहीं उसी को खोने से डरते हैं" और आज के जमाने में ये काफ़ी सटीक भी बैठता है। हमें लगता है कि आज तक ऐसा कोई भी नहीं हुआ जिसपर इस वाक्य का प्रभाव ना पड़ा हो। लेकिन इंसान को इसी के साथ जीना भी पड़ता है, बस लोग इसके साथ जीने के कई बहाने ढूंढ लेते हैं, मसलन कोई बहुत ज्यादा मुस्कुराता रहता है, तो कोई किसी भी बात की परवाह ना करने का बहाना करता है, कोई कहता है कि वह जहां है खुश है, तो कोई जो होगा अच्छा होगा के नियम से जीने की कोशिश करता है, कोई ऐसा भी होता है जो हर बार भूतकाल में हुई बातों को भूलकर आगे बढ़ने में विश्वास करता है, लेकिन ये डर के साथ तो सबको जीना पड़ता है।
ये तो हो गई हम सबकी बात, अब मैं अपने बारे में बताता हूं। मैं भी डरपोक हूं, चाहे मैं कितना भी ये भी ये बोलता रहूं कि नहीं मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। लेकिन दिल के किसी कोने में किसी हिस्से में डर की एक अपनी जगह तो होती ही है। मुझे डर लगता कि जिस रास्ते पर मैं हूं, अगर मंज़िल तक नहीं पहुंच पाया तो, जैसा मैं हूं अगर ज़िंदगी भर अकेला रह गया तो, क्या हुआ अगर ज़िंदगी में थक गया तो, क्या होगा अगर कल का दिन मेरा आख़िरी दिन हुआ तो। सवाल बहुत सारे आते हैं मन में, हालांकि इन सभी सवालों के जवाब में, मैं खुद को ये समझा दिया करता हूं, जो होता है अच्छे के लिए होता है। लेकिन इन सबसे बड़ा डर जो मुझे लगता है वो ज़िंदगी में बात करने के लिए किसी इंसान का ना होना।
कभी कभी मुझे ख़ुद की ख़ामोशी काटने को दौड़ती है, हालांकि इसमें मैं भी कुछ नहीं कर सकता हूं, आज का दौर ऐसा है, किसी के पास समय ही नहीं है, या आप जिससे बात करने की कोशिश करते हैं, उसे आपके ज़िंदगी की भारी बातों से कोई मतलब ही नहीं है। ठीक है उसने ज़िंदगी को आसान बनते हुए देखा होगा, लेकिन मुझे ज़िंदगी कभी आसान नहीं लगी। मैं कभी बिना ये सोचे कि आज कैसे पेट भरूंगा इससे कभी निकल ही नहीं पाया, मुझे तो ये भी नहीं पता कि मैं वो आख़िरी सुकून वाली गहरी नींद कब सोया, नहीं जानता कि आख़िरी बार किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझसे ये कहा हो कि अरे सब ठीक है। ये सब इस लिए नहीं लिख रहा हूं कि मुझे आज सुकून मिलेगा, नहीं लेकिन उस डर के साथ जीने का तरीका खोजने में ख़ुद की मदद कर रहा हूं, जिससे कि रात में जब सोने के लिए जब बिस्तर पर जाऊं, तो वो उलझन वाली नाव मेरे दिमाग़ में ना तैरे, लेकिन ऐसा केवल सपनों में ही होता है। असल जिंदगी में तो यहां हर कोई डरपोक है। क्योंकि यहां सबको पता है कि इस दुनियां की सबसे खतरनाक चीज़ क्या है।
Comments
Post a Comment