आजकल नींद कड़वी हो चली है...
आजकल मैं ख़ुद को अंधेरे में ढूंढने निकल पड़ता हूं। मिलना तो नहीं पाता है ख़ुद से, लेकिन ढूंढते हुए कई बार यादों और वादों के उस नदी तक पहुंच जाता हूं, जहां अक्सर मैं अकेले घंटों तक समय काट देता हूं । जहां मैंने अपने सपनों के बगीचे में देवदार जैसे कई पेड़ लगाए हुए हैं। उनकी छांव में अक्सर मैं खुद को एक छोटी सी चींटी की तरह पाता हूं। उसके नीचे बैठने पर ऊबने जैसी कोई भावना मन में नहीं आती है, और यहीं पर शुरु होती हैं नींद और सपनों की आपसी लड़ाई। आख़िरी जीत किसकी होती है ये कहना मुश्किल होगा क्योंकि सपना पूरा नहीं होता और नींद बीच में ही साथ छोड़ देती है। इस हार जीत में आंखों का और दिमाग़ का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, या इसको इस भाषा में भी कह सकते हैं कि आजकल मेरी नींद कड़वी हो चली है, और सपनों का दौर ऐसा है कि
जब नींद ही नहीं आती है तो सपनों का आना भी एक सपना सा हो जाता है। रोज़ इसी उधेड़ बुन में रात गुजरती है कि आज की नींद थोड़ी मीठी होगी, लेकिन रात कब गुजर जाती है सुबह का उजाला भी नहीं बता पाता है। लेकिन यहां मैं केवल अपनी नहीं कर रहा हूं मुझे पता है कि तुम्हारा हाल भी यही है। तुम्हें लगता होगा कि ज़िंदगी की रेलगाड़ी मैं केवल अपनी ही चिंता करता हूं, तुम्हें अनदेखा कर देता हूं, लेकिन तुम्हारा सोचना गलत है। अब-जब कि तुम जिन्दगी के उसी गाड़ी में सवार हैं जिसपर हम बैठे हैं तो मुझे तुम खुद से अलग नहीं लगते हो।
हां ये अलग है कि तुम्हारा ध्यान मुझपर नहीं है, और तुम मुझे पहचान भी नहीं पाओगे क्योंकि हमनें मौका ही नहीं दिया है कि कोई मुझे समझे या कोई मुझे जानें। मौका भी कैसे दे यहां हर कोई आधे रास्ते में साथ छोड़ देता है। इस बात का डर रहता है कि आज तक जो मेरे सबसे क़रीब था कल वो अचानक से बिना बताए कहीं चला जाएगा। रिश्ते बदलने में समय नहीं लगता है। वैसे भी बचपन से सुनते आये है, कि सफ़र में हर कोई आपका दोस्त नहीं होता है, या तो हमसफ़र होता है या आपका ज्ञान ही आपका सच्चा दोस्त है। तो बस यही कारण है कि मुझे कभी किसी पर जल्दी भरोसा नहीं हो पाता है।
अगर मैं अपनी बात बताऊँ तो हम तुम्हारा ध्यान रख सकते हैं, हर जगह साथ खड़े रह सकते हैं, तुम्हारे टूटते वक्त में तुम्हें संभाल सकते हैं, लेकिन हम ख़ुद को इस बात के लिए भी तैयार रखते हैं कि जब तुम मुझसे दूर जाना चाहोगे हम तुम्हें नहीं रोकने वाले। हमनें एक अरसे से देखा है रिश्तों को बिछड़ते हुए, अपनो को एक दूसरे को लूटते हुए, एक दूसरे की नज़रों में गिरते हुए। इसी लिए मैंने फ़ैसला किया है कि जितनी भी दूर जा सकता हूं अकेले ही चलूंगा, जितना भी दूर भाग सकता हूं अकेले ही भागूंगा और जब कभी मैं थक गया या कभी टूट गया, उस समय तुम अगर मेरे साथ खड़े रहोगे बस वही एक वक्त होगा जब मैं खुद के अलावा किसी और पर भरोसा करुंगा। तब तक के मैं अकेले ही सफ़र में रहूंगा। अब चलता हूं, आंखों में एक जलन सी होने लगी है, लेकिन पता है नींद नहीं आने वाली। अभी दोबारा खुद को अंधेरे में ढूंढने जाना है, मिलना होगा या नहीं कौन जानें...
Beautifully written❤😊
ReplyDeleteBeautifully written
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