वो पांच लोग...
बड़ी हैरानी हुई मुझे अपने आप से आज, जब उसने मुझसे पूछा कि तुम अपनी ज़िंदगी में उन पांच लोगों के नाम बताओ जिनको तुम्हारे होने ना होने से फ़र्क पड़ता हो, हम एकदम से सोच में पड़ गए, लगा जैसे कि ये हमनें कभी सोचा क्यों नहीं, कभी लगा ही नहीं कि ऐसे सवालों से भी कभी सामना होगा मेरा। साधारण डिब्बे से चलते हुए स्पेशल डिब्बे में आ गए पता ही नहीं चला, ठीक है कि वहां भीड़ भाड़ रहता है लेकिन अकेलापन तो नहीं होता है ना, इस डिब्बे में तो कोई किसी से बात ही नहीं करता है, ना किसी की तरफ़ देखकर मुस्कुराता है, बस सब अपनी अपनी धुन में ज़िंदगी को जिए जा रहे बिना बोले, बिना दूसरों पर ध्यान दिए। साधारण डिब्बे में आप भले ही अकेले रहते हैं लेकिन सामने वाला एक बार आपका हाल चाल ज़रूर पूछ लेता है, एक बार आपकी तरफ़ देखकर प्यार से मुस्कुरा भी देता है। उदास ज़िंदगी हमनें पहले भी देखी है लेकिन इतनी नहीं!!
वैसे सच बताऊं तो वो सामने वाली सीट अभी भी ख़ाली पड़ी है, जब स्टेशन पर बैठा था तो स्टेशन मास्टर ने आकर पूछा कि सर आपको कहां जाना है काफ़ी समय से आप यहां अकेले बैठे हैं, किसी का इंतज़ार कर रहे हैं क्या, शाम होने वाली है, ये आख़िरी ट्रेन है, कहां जाना है आपको ? सच बताऊं तो इतने सवालों की आदत नहीं है मुझे फिर भी हमनें उसको टिकट दिखाया तो वो बोला कि आपकी ट्रेन तो बहुत पहले ही जा चुकी है तो फिर आप उसमें क्यों नहीं गए ?
हमनें एक नज़र उसके चेहरे की तरफ़ देखा और पूछा क्या एक रात के लिए हम प्लेटफॉर्म ही रुक जाए तो कोई दिक्कत तो नहीं है, उसने शक की नज़र से देखते हुए बोला कि सर आपके पास ज्यादा सामान भी नहीं है, कहां से आ रहे हैं आप ? हमनें एक गहरी सांस लेते हुए कहा कोई नहीं हम इस ट्रेन पर बैठ जाएंगे। उसने भी ज्यादा सवाल जवाब ना करते हुए ठीक है बैठ जाइएगा दो स्टेशन बाद आपकी ट्रेन आगे मिल जायेगी आपको बोलकर चला गया।
पूरे सूनसान स्टेशन पर किसी को ना देखकर मुझे भी ट्रेन पर बैठना सही फ़ैसला लगा, लेकिन वो सवाल फिर से मन में गूंजता रहा कि कौन है वो पांच लोग, कितने ही लोगों से मिला हूं यहां, उम्र का एक पड़ाव पार कर रहा हूं लेकिन कभी लगा ही नहीं तुम्हारी कमी इतनी खलेगी हमें, तुम तो जानते हो ना मुझे कि कई बार हम थक जाता हूं चलते हुए, तुम्हें ये भी पता है कि मुझे थकना पसंद नहीं है, फिर भी कभी तुम मेरे चेहरे पर थकावट देखते थे तुम्हारा वो कंधे पर हाथ रखकर बोलना कि तुम्हें तो अभी बहुत दूर तक जाना है, इतना बोलकर चले जाना भी काफ़ी था मेरे लिए। लेकिन क्या तुम्हें लगता है मुझे ऐसे चलते जाना चाहिए क्या तुम्हारा इंतज़ार नहीं करना चाहिए, मुझे पता है कि तुम इसे पागलपन ही कहते हो लेकिन यही पागलपन ही तो है, जिसकी वजह आज इस दौर से गुज़र रहा हूं, मुझे इंतज़ार है उस पल का जब तुम मुस्कुराते हुए मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठोगे, मुझे इंतज़ार है जब तुम कहोगे हम साथ में चलते परेशान मत हो, यही ट्रेन मेरी मंज़िल को भी जाती है साथ में सफर करते दोनों मिलकर, अपने अपने सपनों के लिए।
बहुत कम लोग किसी का हाल चाल ले पाते, तलाश जारी रहना ऐसे लोगो का...
ReplyDeleteट्रेन के डिब्बे मजबूती से जुड़े होने चाहिए।
ReplyDeleteकौन आया कौन गया किसने क्या पूंछा मायने नहीं रखते।
और हां गर पूछने वाला सांसों के करीब हो तो एक डिब्बा और बढ़ा लो। लेकिन हां मजबूती से जुड़े होने चाहिए💐
Bahut achha likha hai
ReplyDeleteऐसा लिखने के लिए महसूस करना पड़ता है। जो आप बखूबी करते हो। सार यह समझ आया कि ऐसे लोगों का कभी साथ मत छोड़ना....keep it up👍🏻
ReplyDeleteBeautiful 🌸🌸
ReplyDeleteBadiya
ReplyDeleteहमेशा की तरह... बेहतरीन 💗
ReplyDeleteVery good effort keep it up .
ReplyDelete❤❤❤
ReplyDelete