मुझे लोगों से डर लगता है...




कभी लोग मुझे कहते थे कि मैं बातों को सबसे ज्यादा घुमाती हूं कभी सीधी बात नहीं कहती हूं, लेकिन तुमसे मिलने के बाद हमें लगा ना!! कोई है जो हमसे भी ज्यादा बातों को घुमा लेता है। तुम्हें कोई परेशानी होती है तो सीधे क्यों नहीं कह पाते हो इतना घुमाते क्यों हो। उनकी बातों ने जैसे थोड़ी देर के लिए चेहरे पर चुप्पी सी ला दिया था, उनकी बातों में कहीं न कहीं एक सच्चाई सी थी, सच में हमनें तो अब बातों को घुमाना सीख लिया था, लेकिन इसकी कई वजहें भी थी। कई लोग थे ज़िंदगी में जो हमसे अक्सर ये दावा किया करते थे कि वो हमें बेहतर समझते हैं लेकिन जब वक्त सच में समझने का आया तो सबने अपने-अपने हिसाब से समझना शुरु कर दिया। एक बात कहूं तो एक वो दिन था और एक आज का दिन है, उस के बाद से हमें अपनी बात को किसी से कहने में डर लगने लगा कि हम कैसे किसी से कहें, कैसे किसी को बताएं, वो वक्त वो सच डरावना था, जब अक्सर नींद की ख्वाहिश में आंखें हमेशा खुली ही रहती थी, कई बार कोशिश किया था हमनें, जब कोई ख़ास हुआ तो उसे बताने का कि हम कैसें हैं, लेकिन किसी को समझ में नहीं आती है ना तो कोई समझना नहीं चाहता है, और तो और कभी-कभी तो कुछ हैरान भी हो जाते हैं उन्हें तो विश्वास नहीं होता कि हम ऐसे भी हो सकते हैं, जैसे कि हमें याद है हमें एक घनिष्ठ मित्र ने कहा था कि तुम में बहुत बचपना है लेकिन जब एक साल बाद हम दोनों मिले तो वो कहने लगे कि तुम इतने गंभीर कब हुए, कभी लगा ही नहीं कि तुम इतने गंभीर भी हो सकते हो। अब हम उसको या किसी को भी कैसे समझाएं कि इंसान हमेशा दो चेहरे लेकर जीता है, एक जो दुनियां देखती है और एक जो वो असल ज़िंदगी में होता है। और रही बातों को घुमाने कि तो ज़िंदगी के पन्नों को इतने करीब से देखा है, इतना कुछ खो लिया है कि खुद को सबसे छुपाना सीख लिया है। अब हम किसी को भी इतना मौका नहीं देते हैं कि वो जान सके कि हम कौन हैं और कैसे हैं, क्यों बताना है किसी को, यहां किसी को अपने बारे में बताने लगो तो सामने वाला आपकी बातों को समझने की जगह अपने मन आपकी छवि बनाने लगता है। अब तो बस इतना है कि अगर आपको हमें जानना है तो मेहनत करनी पड़ेगी, हमारे पीछे भागना पड़ेगा आपको, वरना हम तो हैं ही ख़ुद में खोए हुए इंसान। लेकिन एक बात सच है कि ज़िंदगी में कुछ लोग ऐसे भी मिले हैं जिन्होंने ज्यादा बोला तो नहीं लेकिन हमारी बातों को आसानी से समझ लिया। हमें एक किस्सा याद है जब हमें कुछ आर्थिक मदद की ज़रूरत थी और हमनें बड़े संकोच करते हुऐ उनसे मांगें थे, और हमनें जितना मांगा था उससे कुछ ज्यादा ही उन्होंने हमें दिया था। उस दिन अहसास हुआ अच्छे इंसान या अच्छा दोस्त होने का। सच कहूं तो हमें नहीं पता कि हम ज़िंदगी में कब किसी के लिए बुरे रहे होंगे या कब अच्छे, लेकिन जब उनकी बारी आई तो उन्होंने दोस्त होने का फ़र्ज़ सबसे पहले निभाया, हमें लगता है रिश्ते ऐसे ही तो होते हैं, जहां जब जिसको आपकी ज़रूरत हो, मदद के लिए सबसे आगे होना। हमें याद है हमारे दादा जी ने कहा था कि बेटा ज़िंदगी में कभी किसी पर बोझ मत बनना, वो बात आज भी हमारे कानों में गूंजती रहती है। अब अगर हम परेशान भी होते हैं तो हम शान्त रहना जानते हैं, उस परेशानी को अपने अन्दर ही समेट कर रखते हैं, और जब कभी किसी से कोई बात कहनी हो तो घुमा फिरा कर कहते हैं। सच हमनें कितना कुछ सीख लिया है कि कैसे बातों को घुमाना है या छुपाना है।

 

Comments

  1. ऐसा लगा कि स्वयं को पढ़ रही हूं। बेहतरीन।

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  2. दुनिया ऐसी ही होती है।

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